स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekanand Biography in Hindi

Swami Vivekanand Biography in Hindi: हमारे देश मे वर्षो से साधु संतो व महापुरुषों ने जन्म ले कर इसकी भूमि को पावन किया है इन महापुरुषों ने अपने ज्ञान व चिंतन से हमे सदा सही पथ पर चलने का मार्ग दिखाया इन्होने अपने देश के साथ पूरी दुनिया का सर गर्व से ऊपर किया आज भी इन महापुरुषों से हम सभी प्रेरणा प्राप्त करते है ऐसे ही एक महापुरुष है स्वामी विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद जी प्रेरणा लेने वालो मे बहुत से लोग जैसे सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, निकोल टेस्ला आदि शामिल है। ऐसे और भी बहुत से लोग है जो इनके दिखाए मार्ग पर चले यह वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने वेदों की ताकत के बारे मे दुनिया को जानकारी दी।

Swami Vivekanand Biography in Hindi
Swami Vivekanand Biography in Hindi

जिससे दुनिया को वेदों की ताकत का पता चला और हमारी संस्कृति के सामने सभी ने सर झुकाया। उसके बाद पूरी दुनिया ने माना कि हिंदुस्तान पूरी दुनिया का जगत गुरु है।

आज के आर्टिकल मे हम आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय के बारे मे सभी अहम जानकारी देंगे ताकि आप इस महापुरुष के बारे में जान पाए कि इन्होने कैसे अपने जीवन का उपयोग सभी के हितो के लिए किया।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – Swami Vivekanand Biography in Hindi

पूरा नामनरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त  
घरेलू नामनरेन्द्र और नरेन  
जन्म12 जनवरी 1863  
जन्मस्थानकलकत्ता (पं. बंगाल)  
पिताविश्वनाथ दत्त  
माताभुवनेश्वरी देवी  
गुरु का नामरामकृष्ण परमहंस  
भाई-बहन9  
संस्थापकरामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन
साहत्यिक कार्यराज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरुगुरु, अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान
मृत्यु तिथि4 जुलाई, 1902  
मृत्यु स्थानबेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत

स्वामी विवेकानंद का शुरुआती जीवन परिचय

महापुरुष स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था, स्वामी जी ने कोलकाता शहर में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया। स्वामी जी 9 भाई बहनों के बीच में रहकर पले बढ़े।  उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था।

स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था  और वह उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के जाने-माने और सफल वकील थे।  उनकी वकालत के चर्चे सुर्खियों में रहते थे, इसके अलावा उनको फारसी और अंग्रेजी भाषा की भी अच्छी जानकारी थी।

साथ ही उनकी माता भुवनेश्वरी देवी जो की बड़ी ही धार्मिक विचारों की महिला थी, जिन्हें रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का काफी अच्छा ज्ञान था। इसके अलावा वे बुद्धिमानी और प्रतिभाशाली महिला थी,साथ ही उन्हें भी अंग्रेजी भाषा की समझ थी।

वहीं स्वामी विवेकानंद जी पर अपनी मां की छत्रछाया का गहरा असर पड़ा, वह घर मे ही ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाया करते थे। उन्होंने अपने माता-पिता से अच्छे संस्कारों को सिखा, इसके साथ ही स्वामी जी पर उनके माता-पिता के अच्छे गुणों का गहरा असर पड़ा और उन्हें अपने घर से ही जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त हुई। अपने माता पिता के स्वभाव और परवरिश के कारण ही उनको अच्छा आकार तथा उच्च कोटि की सोच प्राप्त हुई।

स्वामी विवेकानंद जी का बचपन 

ऐसा कहा जाता है कि नरेंद्र नाथ छोटे से ही बहुत नटखट, शरारती और तेज बुद्धि के इंसान थे और शायद इसीलिए वह सब बच्चों से अलग थे व उनकी प्रतिभा इतनी तेज थी कि एक बार जो भी कुछ उनके नजरों के सामने से निकल जाता था वह कभी उसे भूलते नहीं थे और ना ही उन्हें दोबारा उस चीज को पढ़ने की जरूरत पड़ती थी।

बचपन से ही वह अलग-अलग धर्म-जाति के भेदभाव करने पर सवाल उठाया करते थे।

उन्होंने अपने पिता से सीखा की सबकी इज्जत करनी चाहिए, और कभी किसी को दुखी नहीं करना चाहिए इसलिए जब वह साधु बने तब वे कहीं भी जाए किसी गरीब के घर या राजा के घर, हिंदू या मुस्लिम के घर पर, सब से एक जैसा ही व्यवहार रखते थे।

उन्हें बड़े-छोटे, धर्म-जाति, अमीर-गरीब किसी से भी फर्क नहीं पड़ता था। अपने युवावस्था से ही उन्हें अध्यात्मिकता के क्षेत्र में रुचि थी। साधू-सन्यासियों की बातें उन्हें अधिकतम प्रेरित करती थी। वह हमेशा से ही भगवान के चित्रों को देखकर ही ध्यान और साधना करने में लग जाते थे।

स्वामी विवेकानंद भगवान की खोज में तथा रामाकृष्ण परमहंस के साथ उनका संबंध

स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही भगवान की भक्ति में लीन रहते थे और उनके जीवन का बस एक लक्ष्य था कि उन्हें भगवान को देखना है और वह अनुभव करना चाहते थे कि भगवान से मिलकर कैसा लगता है।

बस फिर वह अपनी इसी खोज में ब्रह्म समाज से भी जुड़े स्वामी विवेकानंद जी छोटे से ही बड़े जिज्ञासु किस्म के थे,  इसी कारण उन्होंने एक बार ब्रह्म समाज के लीडर महर्षि देवेंद्र नाथ से सवाल किया था कि, ‘क्या उन्होंने भगवान को देखा है? इनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र जी ने उनके इस सवाल के जवाब के लिए स्वामी जी को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी और फिर स्वामी जी की मुलाकात वर्ष 1881, नवम्बर मे रामकृष्ण से दक्षिणेश्वर मंदिर में हुई।

वह स्वामी जी से मिलकर बहुत खुश हुए। जिसके बाद स्वामी जी राम कृष्णा परमहंस को अपना गुरु मान लिया और उन्हीं के बताए मार्ग पर आगे बढ़ते गए।

स्वामी विवेकानंद जी का भारत भ्रमण

स्वामी विवेकानंद जी ने महज 25 साल की उम्र में ही गेरुआ वस्त्र धारण किया और फिर वह पूरे भारतवर्ष में पैदल ही यात्रा के लिए निकल गए । उन्होंने पैदल खाली पैर वाराणसी, अयोध्या, वृंदावन, आगरा, अलवर, ऋषिकेश समेत बहुत जगहों की यात्रा की।

अपनी इस यात्रा के समय वे गरीब लोगों की झोपड़ी और राजाओं के महल में रुके।  यात्रा के दौरान उन्हें तरह-तरह के क्षेत्रों और उनसे जुड़े लोगों की जानकारी प्राप्त हुई।

इस समय उन्हें जातिगत भेदभाव जैसे बातों का भी पता चला और उन्होंने इसे खत्म करने की भी कोशिश की।

 23 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद जी कन्याकुमारी पहुंचे, वहां वे 3 दिनों तक एक गंभीर समाधि में रहे व यहां से लौटते समय राजस्थान के आबूरोड में अपने गुरु भाई स्वामी तुर्यानंद और स्वामी ब्रह्मानंद से भी मिले।

फिर उन्होंने उनसे अपने भारत की यात्रा के समय हुई वेदना बताई और कहा कि उन्होंने इस यात्रा के दौरान देश की गरीबी और उनके दुखों को जाना है। यह सब देखकर वह बेहद दुखी है, इसके बाद ही फिर उन्होंने इन सब से मुक्ति के लिए अमेरिका जाने का फैसला लिया।

स्वामी विवेकानंद जी की अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषण

1893 में स्वामी विवेकानंद अमेरिका पहुंचे और वहां उन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया। इसी समय कई जगहों पर धर्मगुरुओं ने अपनी किताब रखी और भारत के धर्म वर्णन के लिए श्री भगवत गीता भी रखी, जिसका काफी मजाक भी उड़ाया गया। मगर जब स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ज्ञान और अध्यात्म से भरी बातों की शुरुआत की तब सभी खड़े होकर तालियां बजाने लगे और सभागार तालियों से गूंज उठा।

स्वामी विवेकानंद जी के भाषण में ज्ञान और वैदिक दर्शन तो था ही, इसके साथ ही शांति से जीने का संदेश भी छुपा था। उन्होंने अपने भाषण से भेदभाव जाति धर्म का जमकर विरोध किया था। इसी समय उन्होंने भारत में अपनी एक नई छवि बनाई, साथ ही अब वह और भी लोकप्रिय हो गए।

धर्म संसद के समाप्त होने के बाद भी स्वामी जी 3 सालों तक अमेरिका में ही वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार करते रहे और इसके 2 साल बाद उन्होंने न्यूयॉर्क, शिकागो, बोस्टन मे भी स्पीच दी। 1894 में स्वामी विवेकानंद जी की व्यस्तता का प्रभाव उनकी हेल्थ पर पड़ने लगा था। इसके बाद उन्होंने योग की कक्षाएं देने का फैसला किया। 1896 में स्वामी जी की मुलाकात ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मैक्स मूलर से हुई जिन्होंने उनके गुरु रामाकृष्ण परमहंसा की जीवनी लिखी थी।

15 जनवरी 1897 को वह अमेरिका से श्रीलंका पहुंचे वहां उनका स्वागत बहुत ही जोर शोर से हुआ, इसके बाद स्वामी जी रामेश्वरम आ गए । फिर वह 1 मई 1897 को कोलकाता लौट आए, जहां उनके उच्च विचारों को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। अपनी बातों में वह हमेशा विकास और शांति का जिक्र करते थे।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

1 मई 1897 को जब स्वामी विवेकानंद जी वापस कोलकाता आए और तब उन्होंने रामकृष्ण मिशन का गठन किया। जिसका मुख्य उद्देश्य नए भारत के निर्माण के लिए स्कूल, कॉलेज अस्पताल और साफ-सफाई के क्षेत्र में कदम उठाना था।

अपने कुछ वेस्टर्न दोस्तों के साथ मिलकर एक नए मठ को बनाया जिसका नाम उन्होंने बेलूर मठ रखा। यह मठ राम कृष्णा परमहंस के चाहने वालों के लिए हेड क्वार्टर बन गया।

हर दिन स्वामी विवेकानंद जी यहां आए हुए लोगों से मिलने आते थे, लोग भगवान से मिलने की इच्छा रखने के कारण उनसे मदद लेना चाहते थे।

बाद में वह बेलूर मठ में रहने लगे।  उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा था, डॉक्टर ने भी उन्हें अब आराम करने की सलाह दी थी।  अब स्वामी जी ज्यादातर समय मठ के अंदर रहकर ही व्यतीत करते थे। कभी-कभी साधुओं के साथ बैठकर भजन गाया करते थे, और इस दौरान भी वह अपने आप को किताबों में व्यस्त रखा करते थे।  दिन पर दिन उनका शरीर कमजोर हो रहा था, परंतु उनका दिमाग अभी भी बहुत तेज था।

स्वामी विवेकानंद जी का अंतिम समय

स्वामी विवेकानंद जी को अब महसूस हो गया था कि वह अब और नहीं जी पाएंगे। उन्होंने अपने से बड़े साधुओं को बता दिया था, कि वह अपना अंतिम संस्कार कहां चाहते है। 4 जुलाई 1902 को 39 साल बहुत कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई।

उनके शिष्यों ने बताया कि उन्होंने उस मठ में ही समाधि ले ली।  उन्होंने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित किया कि, वह 40 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाएंगे। वही इनका अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

स्वामी विवेकानंद के बारे में कुछ प्रश्न और उत्तर

प्रश्न. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर. 12 जनवरी 1863

प्रश्न. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कहाँ पर हुआ था?

उत्तर. कलकत्ता (पं. बंगाल)

प्रश्न. स्वामी विवेकानंद जी की रामकृष्ण परमहंस से प्रथम बार भेंट कब हुई थी?

उत्तर. वर्ष 1881, नवम्बर

प्रश्न. स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर. 4 जुलाई 1902

प्रश्न. स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु कहाँ हुई थी?

उत्तर. बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही महान व्यक्तित्व के महापुरुष थे उन्होंने अपने जीवन को पूरी श्रद्धा के साथ समाज के कल्याण मे लगाया, ताकि भारत को दुखो से मुक्ति मिले। वही इन्होने सदैव गरीबो के कल्याण की कामना की। हमारे देश के प्रत्येक युवा को आवश्यकता है कि वह इनसे प्रेरणा ले और सही पथ पर आगे बढ़ता जाये। 

आज के आर्टिकल में हमने आपको स्वामी विवेकानंद का  जीवन परिचय (Swami Vivekanand Biography in Hindi) से जुडी  संपूर्ण जानकारी दी है। उम्मीद है कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा, अगर आपको हमारे इस आर्टिकल मे कोई गलती लगे तो आप कमेंट बॉक्स के जरिये हमे बता सकते है हम उसमे सुधर करेंगे।

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